Sunday, December 11, 2016

कोंच। कल प्रमुख मुस्लिम त्योहार बाराबफात शांतिपूर्वक संपन्न कराने को लेकर रविवार को प्रशासन ने अपनी हनक दिखाई, एसडीएम, सीओ व तहसीलदार की अगुवाई में पुलिस और पीएसी बल के साथ नगर में फ्लैग मार्च निकाला गया। बूटों की भारी थाप से निश्चित रूप से अराजक तत्वों के दिलों में भय समाया होगा। जगह जगह रुक कर अधिकारियों ने नागरिकों से कहा कि त्योहार शांतिपूर्वक संपन्न कराना प्रशासन की प्राथमिकता है और इसके लिये हरसंभव तैयारी प्रशासन ने कर ली है, जिसने भी शांति भंग करने का प्रयास किया उससे सख्ती के साथ निपटा जायेगा।
जुलूसे मोहम्मदी को लेकर प्रशासन न केवल अपना होमवर्क कर चुका है बल्कि नागरिकों को अपनी हनक से बाकिफ भी करा दिया है। रविवार की शाम एसडीएम मोईन उल इस्लाम, सीओ एके शुक्ल, तहसीलदार भूपाल सिंह और कोतवाल देवेन्द्रकुमार द्विवेदी की अगुवाई में कोतवाली से फ्लैग मार्च निकाला गया। पुलिस और पीएसी बल की भारी संख्या के साथ प्रशासन ने नगर के मुख्य राजमार्ग और बाजारों में मार्च निकाल कर नागरिकों को यह जताने का प्रयास किया कि त्योहार के मद्देनजर प्रशासन पूरी तरह से अलर्ट है और अराजक तत्वों से सख्ती से निपटने में किसी प्रकार का समझौता नहीं किया जायेगा। अधिकारियों ने कहा भी कि त्योहार की शुचिता बनाये रखें और किसी भी प्रकार का अभद्र प्रदर्शन न करते हुये शांति और सद्भाव के साथ पर्व मनायें। इस दौरान एसएसआई अजयकुमार सिंह, सुरही चौकी इंचार्ज संजीव यादव, सागर चौकी इंचार्ज रवीन्द्रकुमार त्रिपाठी, एसआई विनोदकुमार त्रिपाठी आदि मौजूद रहे।

Saturday, December 26, 2015

उरई, जागरण संवाददाता : जिले भर में सर्दी का प्रकोप जारी है। सुबह शाम शीत लहर से आम जनमानस बेहाल रहा। कदौरा में सर्दी लगने से एक किसान की मौत हो गई। वह खेत में पानी लगा रहा था। इसी दौरान गश खाकर गिर गया। उसे उपचार के लिए अस्पताल पहुंचाया जाता इससे पहले ही उसने दम तोड़ दिया।
जिले में शनिवार को अधिकतम तापमान 17 डिग्री सेल्सियस व न्यूनतम तापमान 6.5 डिग्री सेल्सियस रहा। दिन की शुरूआत शीत लहर से हुई। जिसने लोगों को ठिठुरने के लिए मजबूर कर दिया। सुबह करीब दस बजे के आसपास बादलों के बीच से सूर्यदेव ने दर्शन दिए। बादलों के बीच सूरज की लुकाछिपी जारी रही
शाम के पांच बजते ही शीत लहर ने एक बार फिर से कहर बरपाना शुरू कर दिया। इसके चलते बाजार व सार्वजनिक स्थानों पर सन्नाटा पसरने लगा। शाम को लोग सिर से पैर तक गर्म कपड़ों से ढके दिखे। वहीं शहर के प्रमुख चौराहों व रेलवे स्टेशन के बाहर अलाव की व्यवस्था न होने से रिक्शे वाले कूड़ा व पन्नी बटोरकर आग जलाते नजर आए। गलन की वजह से लोग बेहाल हो गए। कदौरा थाना क्षेत्र के ग्राम मरगायां में अनिल कुमार (35) श्रीवास की सर्दी लगने से मौत हो गई । अनिल शुक्रवार रात अपने खेत में पानी लगाने गया था। रात में भीषण ठंड उसके सीने में बैठ गई जिससे उसकी तबियत बिगड़ गई। उसे परिवार वाले सरकारी अस्पताल में गये। जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया।
उरई, जागरण संवाददाता : बिना बताये लंबे समय से गैरहाजिर चल रहे चार सहायक अध्यापकों पर जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी राजेश कुमार वर्मा ने सेवा समाप्ति की कार्रवाई कर दी। साथ ही चेतावनी दी गयी कि जो भी अध्यापक कर्तव्यों के निर्वहन में लापरवाही करेगा उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई होगी।
जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी को जानकारी हुई कि कई शिक्षक लंबे समय से बिना बताये अनुपस्थित चल रहे हैं। इस पर बीएसए ने कार्यालय से और खंड शिक्षा अधिकारियों के माध्यम से जानकारी कराई तो पता चला कि प्राथमिक विद्यालय छतारे का पुरा में कार्यरत सहायक अध्यापक आशुतोष कुशवाहा तीन वर्ष से अनुपस्थित हैं। स्कूल न आने की कोई वजह भी स्पष्ट नहीं की है। पूर्व माध्यमिक विद्यालय बिरगंवा के सहायक अध्यापक सुधांशु ¨सह भी तीन वर्ष से बिना सूचना के गायब हैं। प्राथमिक विद्यालय बदावली में तैनात सहायक अध्यापक नीलम गुप्ता चार वर्ष से शिक्षण कार्य करने नहीं आ रही हैं। इसी तरह से प्राथमिक विद्यालय सोंधी में तैनात शिखा वर्मा भी चार वर्ष से अनुपस्थित चल रही हैं। इसको घोर लापरवाही मानते हुए बीएसए ने चारों अध्यापकों की सेवा समाप्ति कर दी है। बीएसए ने बताया कि इसके पहले इन शिक्षकों को नोटिस दिये गये थे लेकिन किसी ने उपस्थित होकर जवाब नहीं दिया।

Tuesday, December 22, 2015

जालौन: बेमौसम बारिश और ओलों ने पूरे देश में फसलों पर कहर बरपाया है। किसान बेहाल हैं और तनाव में वे जान भी दे रहे हैं। विदर्भ के बाद अब उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड किसानों की खुदकुशी का गढ़ बनता जा रहा है, लेकिन सरकार किसानों की खुदकुशी कम दिखाने के लिए आंकड़ों में हेरफेर कर रही है।

जालौन जिले के दूरदराज के तीकर गांव में तिलक चंद की मौत को एक हफ़्ता हो गया है। शांति के लिए घर में हवन चल रहा है। बेमौसम बारिश में उनकी गेहूं की आधी फसल बरबाद हो गई। तिलक चंद ने एक स्थानीय साहूकार से 35 हज़ार रुपये उधार लिए थे और वो भी काफी ऊंचे ब्याज पर। तिलक चंद के पिता कपिल सिंह बताते हैं, मेरी पोती दौड़ती हुई आई कि चाचा ने खुद को फांसी लगा ली है, मैं दौड़ता हुआ आया तो उसे घर में मृत पाया। लेकिन ज़िला प्रशासन अलग ही दलील दे रहा है। प्रशासन का कहना है कि तिलक चंद शराबी था और घर में कलह के चलते उसने जान दे दी।

तिलक चंद अकेले नहीं हैं। प्रशासन ने खुदकुशी के 24 मामले दर्ज किए हैं, लेकिन मार्च के महीने में जो भी मौतें हुई हैं, उन्हें या तो प्राकृतिक मौत करार दिया गया है या फिर परिवारिक कलह से मौत। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि किसानों की खुदकुशी को कम दिखाने के लिए आंकड़ों में हेरफेर की जा रही है।
'परमार्थ' एनजीओ के संजय सिंह कहते हैं, अक्सर सरकारें कहती हैं कि उनके राज्य में खुदकुशी की घटनाएं नहीं हो रही हैं, क्योंकि वे इसी प्रतिष्ठा से जोड़कर देखती हैं, लेकिन हकीकत इससे अलग है। यूपी में 2013 में किसानों की खुदकुशी के 750 मामले सामने आए और यह आंकड़ा बेरोज़गारों की खुदकुशी से दोगुना है और घर संभालने वाली महिलाओं की खुदकुशी के बाद दूसरे नंबर पर है।
फसल चौपट होने के बाद हुई मौतों को देखकर मुख्यमंत्री ने राहत का एलान तो किया, लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि दूसरे राज्यों की तरह यूपी में खुदकुशी करने वाले किसानों के परिवारों के लिए न तो मुआवज़े की कोई स्पष्ट नीति है और न ही उनके पुनर्वास की।
यूपी योजना आयोग के सदस्य सुधीर पनवार का कहना है कि अगर हम ऐसे मामलों के लिए राहत की कोई नीति बनाते हैं तो इसका मतलब होगा कि हम लोगों के द्वारा खुदकुशी की अपेक्षा रखते हैं। इससे सामाजिक समस्याएं पैदा होंगी।
किसानों की खुदकुशी की वजह को लेकर अलग-अलग दलीलें हो सकती हैं, लेकिन खेती पर निर्भर किसानों की बदहाली को लेकर कोई दो राय नहीं हो सकती, जो हमारी व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल है।
उरई। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत आशा सम्मेलन का आयोजन आज अंबेडकर चैराहा स्थित मणींद्रालय सभागार में आयोजित किया गया। जिसका शुभारंभ मुख्य अतिथि के रूप में आये सदर विधायक दयाशंकर वर्मा के द्वारा किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता मुख्य चिकित्साधिकारी आशाराम गौतम व संचालन डाॅ. धर्मेंद्र ने किया।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत आशा कार्यकत्रियों को सम्मानित करने के लिए पूर्व में ही आयोजन निर्धारित कर दिया गया था। जिसके क्रम में आज मणींद्रालय सभागार में कार्यक्रम के आयोजन के दौरान सर्वप्रथम मुख्य चिकित्साधिकारी ने अतिथियों का स्वागत कर कार्यक्रम की शुरूआत की और आयोजित कार्यक्रम के उद्देशों को विस्तार पूर्वक बताया। इस दौरान उन्होंने कहा कि सम्मेलन के माध्यम् से सुदूर क्षेत्रों में कार्यरत आशा कार्यकत्रियों को प्रोत्साहन तथा उनके कार्य के प्रति निष्ठा और लगन को समाज में गरिमामयी स्थान दिलाना ही कार्यक्रम को महत्वपूर्ण उद्देश्य है। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आये दयाशंकर वर्मा ने उपस्थित लोगों को शासन की चल रही योजनाओं के बारे में जानकारी गिनाई और कहा कि सरकार की मंशा है कि हर तबके के लोगों को स्वास्थ्य संबंधी सारी सुविधाये मुहैया हो सके। उन्होंने कहा कि आशा कार्यकत्रियों की लगन और कार्य करने की क्षमता को देखते हुए उनके वेतनमान को बढ़ाने की पुरजोर कोशिश की जायेगी। साथ ही उन्होंने कहा कि अस्पतालों में जो पर्चा एक रुपये में बनाया जा रहा है जल्द ही उसको निःशुल्क कराने के लिए प्रयास जारी हैं। अपर मुख्य चिकित्साधिकारी डाॅ. बीएम खैर ने आशा योजना तथा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के कार्यक्रम के शुरू होने से लेकर अब तक इस दौरान आशाओं के कार्य व उनकी भूमिका के बारे में विस्तृत जानकारी दी। बाद में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के जिला प्रबंधक डाॅ प्रेमप्रताप सिंह ने संचालित कार्यक्रमों की विस्तृत जानकारी दी। कार्यक्रम के अंत में मुख्य चिकित्साधिकारी डाॅं. आशाराम गौतम ने सभी आशा कार्यकत्रियों का आभार प्रगट किया और उनसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए आवाहन किया। इस दौरान मुख्य रूप से महिला अस्पताल की मुख्य चिकित्सा अधीक्षका डाॅ. सुनीता बनौधा, अपर मुख्य चिकित्साधिकारी डाॅ. सुग्रीव बाबू, डाॅ जी. प्रसाद, डाॅ धर्मेंद्र, पकंज कुमार (जिला लेखा प्रबंधक) व स्वयं सेवी संस्था के राजेश भदौरिया सहित अन्य विभागों के अधिकारी मौजूद रहे।
इन्हें किया गया सम्मानित
कार्यक्रम के दौरान प्रथम पुरस्कार पाने वालों को पांच हजार रुपये दिये गये जिनमें ममता शुक्ला, संगीता भदौरिया, संतोषी, अनसुइया, मीनादेवी, रतन कुवंर, शान्ति देवी, भरत कुमारी, रानी देवी चयनित रहीं। द्वितीय पुरस्कार दो हजार रुपये दिये गये जिसमें गीतादेवी, अंगूरी देवी, महरूनिशा, श्रीबाई, किरन देवी, मीरा, शायराबानो, गायत्री देवी, सुनयना देवी चयनित हुई। अंतिम व तृतीय पुरस्कार पाने वालों में सुमन देवी, ऊषा देवी, प्रभा देवी, कलावती, सुषमा, उमादेवी, निर्मला, सुधा गुप्ता, निर्मला कुमारी मौजूद रहीं।
जालौन-उरई। भारतीय स्टेट बैंक की स्थानीय शाखा में उपभोक्ताओं को जबरन एटीएम कार्ड लेने के लिए अधिकारी व कर्मचारी मजबूर कर रहे हैं। इतना ही नहीं बिना एटीएम कार्ड लिए उपभोक्ताओं को भुगतान करने से भी मना कर दिया जाता है। जिसकी शिकायत पीड़ित उपभोक्ता ने जिलाधिकारी से की। वहीं शाखा प्रबंधक का कहना है कि नए नियमों के अनुसार प्रत्येक खाताधारक को एटीएम कार्ड लेना अनिवार्य कर दिया गया है।
स्थानीय चुर्खीरोड निवासी एसपी सिंह ने जिलाधिकारी रामगणेश को एक शिकायती-पत्र प्रेषित करते हुए बताया कि भारतीय स्टेट बैंक की स्थानीय शाखा में तैनात अधिकारी व कर्मचारी उपभोक्ताओं को जबरन एटीएम कार्ड लेने के लिए मजबूर कर रहे हैं। शनिवार को जब वह रूपए निकालने के लिए शाखा में पहुंचे तो बैंक अधिकारियों व कर्मचारियों ने उन्हें बिना एटीएम कार्ड लिए भुगतान करने से मना कर दिया। पीड़ित उपभोक्ता ने जबरन एटीएम कार्ड न बनाए जाने की मांग जिलाधिकारी से की।

Friday, March 13, 2009


Jalaun District is a district of Uttar Pradesh state of India. The district is named after town of Jalaun, which was the former headquarters of a Maratha governor, but the administrative headquarters of the district is at Orai. Other large towns in the district are Kalpi, Orai, Konch, and Madhogarh. Jalaun District is a part of Jhansi Division.

The district lies entirely within the level plain of Bundelkhand, north of the hill country, and is almost surrounded by the Yamuna River, which forms the northern boundary of the district, and its tributaries the Betwa, which forms the southern boundary of the district, and the Pahuj, which forms the western boundary.

In early times Jalaun seems to have been the home of two Rajput clans, the Chandelas in the east and the Kachwahas in the west. The town of Kalpi on the Yamuna was conquered by the armies of Muhammad of Ghor in 1196. Early in the 14th century the Bundelas occupied the greater part of Jalaun, and even succeeded in holding the fortified post of Kalpi. That important possession was soon recovered by the Delhi Sultanate, and passed under the way of the Mughal Empire. Akbar's governors at Kalpi maintained a nominal authority over the surrounding district, and the Bundela chiefs were in a state of chronic revolt, which culminated in the war of independence under Maharaja Chhatrasal. On the outbreak of his rebellion in 1671 he occupied a large province to the south of the Yamuna. Setting out from this base, and assisted by the Marathas, he conquered the whole of Bundelkhand. On his death in 1732 he bequeathed one-third of his dominions to his Maratha allies, who before long succeeded in annexing the whole of Bundelkhand. Under Maratha rule the country was a prey to constant anarchy and strife. To this period must be traced the origin of the poverty and desolation which are still conspicuous throughout the district. In 1806 Kalpi was made over to the British, and in 1840, on the death of Nana Gobind Ras, his possessions lapsed to them also. Various interchanges of territory took place, and in 1856 the boundaries of the British district were substantially settled, with an area of 1477 square miles.

Jalaun was the scene of much violence during the Revolt of 1857. When the news of the rising at Kanpur reached Kalpi, the men of the 53rd Native Infantry deserted their officers, and in June the Jhansi rebels reached the district, and began their murder of Europeans. It was not until September 1858 that the rebels were finally defeated. In the later 19th century, the district suffered much from the invasive kans grass (Saccharum spontaneum), owing to the spread of which many villages were abandoned and their land thrown out of cultivation. The population of the district was 399,726 in 1901, and the two largest towns are Kunch and Kalpi (pop. 10,139 in 1901). The district was traversed by the line of the Indian Midland railway from Jhansi to Kanpur. A small part of it is watered by the Bethwa Canal. Grain, oil-seeds, cotton and ghee were exported.

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